बहुरूपों में सजकर पीढ़ियों से आजीविका चलाता आ रहा एक परिवार

शिव, गब्बर, कृष्ण जैसे कई रूपों में मनमोहता आकाश राजभट्ट

आलीराजपुर। रूपों में सजना और सवरकर काल्पनिक पात्रों में जीवंतता देना किसी मंजे हुए कलाकार के बस की ही बात होती है। चाहे फिल्म के पात्र हो,देवी देवताओं का रूवरूप हो या फिर अन्य पात्रों की बात करे तो उनमें रंग भरकर लोगो के बीच लोकप्रिय हो जाना अपने-आपमें महत्वपूर्ण बात होती है। जी हां हम बात कर रहे है उस काल्पनिक पात्रों के रचियता राजस्थान के निवासी आकाश भट्ट जो कि पीढ़ियों से बहुरूपियों का काम कर न केवल लोगो का मनोरंजन करते है बल्कि पूरे देश का भ्रमण कर अपनी आजीविका को चलाते आ है। बहुरूपियां जैसे मनोरंजन पात्र राजभट्ट परिवार पीढ़ियों से करता आ रहा है। परिवार के मुखिया बाबुलाल बताते है कि बुहरूपियां हमारे परिवार के लिए एक तरह से वरदान जैसा ही है क्योकि इसी के माध्यम से हम अपने परिवार का भरण पोषण करते है। बाबुलाल राजभट्ट दुख व्यक्त करते हुए बताया कि हमारा परिवार राज दरबार में पण्डिताई का काम करता था ,परंतु वर्तमान में हमें देश के विभिन्न भागों में परिवार सहित भटकना पड़ता है,लेकिन सरकार की ओर से हमारी कला को प्रोत्साहन देने के लिए कभी कोई प्रयास नही किया गया ना ही कोई शासकीय सहायता प्रदान की।
अरे ओ कालिया कितने आदमी थे, जींगालाला जींगालाला उ उ , चंद्रकांता मेरी थी मेरी है मेरी रहेगी , तु गुरू में चेला , हम जंगलो के राजा है यहां हमारी हुकुमत चलेगी जैसे रोबदार आवाज बोलता कोई बंदा जब शहर की गलियों से निकलता है तो बरबस ही लोगो का ध्यान उसकी तरह चला जाता है। काल्पनिक आवरण से पात्र को जिंदा करते हुए उसी भाव भंगीमा डायलाॅक बोलना आम लोगो को खुब भाता है। बहुरूपियां आकाश राजभट्ट के द्वारा लगभग 52 पात्र जैसे भोलेनाथ, गुरूचेला, जिंदा बादशाह, एकलव्य ,देवर भाभी , मेरा नाम जोकर , मेरा नाम कु्ररसिंह , गब्बर ,कृष्ण, आदिमानव इसी तहर कई सारे अलग-अलग रूपों में सजकर शहर में 7 दिनों तक लोगो का मनोरंजन करते है। सुबह जल्दी से लगभग मेकअप कर 10 से शाम 6 बजे तक अनवरत शहर के विभिन्न गलियों में घुमना शारारिक और मानसिक रूप से हमें थका देती है बावजुद उसके हम इस बहुरूपियें की कला को जिंदा रखना चाहते है क्योकि यह हमें ईश्वर के द्वारा दी गई कला है। आकाश राजभट्ट की माने तो उनका परिवार जिनमें 2 बच्चे और पत्नि के साथ एक शहर में 10 दिन रूककर 7 दिन बहुरूपियों के वेश में लोगो के मनोरंजन के लिए निकलते है। वही एक पात्र को जीवंत बनाने में लगभग 1000 से 1200 रूपयें का खर्च आता है उसके बाद अंतिम दिन लोग हमारी कला को देखकर अपनी इच्छानुसार सहयोग राशि प्रदान करते है लोगो द्वारा मिली सहयोग राशि से ही हमारे परिवार का भरण पोषण होता है। इसी तरह यह क्रम अनवरत चलता रहता है जिसमें उनके पिता बाबुलाल और भाई वे स्वंय तीनो क्रमशः अपने परिवार के साथ यात्रा करते है। हमारे बच्चे अभी पढाई कर रहे है और जब उनकी नौकरी लगेगी वे अपने बचे हुए समय में इस कला को जीवंत रखेगें और इसी तरह लोगो के मनोरंजन के लिए आगे काम करते रहेगे।

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